Sunday, 25 November 2018

हां मैं छोड़ ही रही हूं | लघुकथा

हां तो क्या हुआ , तुम बता रही थी की कहीं बात चल रही है , वो बात कहाँ तक पहुँची ?

तुम्हें ज्यादा जानकारी चाहिए तो पापा का नम्बर देती हूं मैं फोन मिला लो , पूरी जानकारी मिल जएगी।

अरे यार तुम गुस्सा जाती हो ,यदी मुझे तुम्हारे पापा को फोन करने का हिम्मत होती तो ये बात चलने की नौबत ही क्यूं आती , तुमने खुद ही बताया था तो मैंने सोचा पूछ लूं कि कार्य कि प्रगति कितनी हुई है। चलो छोड़ो जो भी ......

हां मैं छोड़ ही रही हूं ....

किसको ?

अरे यार ज्यादा मुझसे सवाल जबाब मत करो ... तुमको छोड़ रही हूं , अब समझे ?

नहीं ... कुछ बातों को मैं कभी भी नहीं समझना चाहता और ना ही मैं समझूंगा... और तूम मुझे बस स्व-शरीर ही छोड़ सकती हो , तुम ज़िन्दगी में भले नहीं रहोगी मेरी पर तुम मेरी ज़िन्दगी आज भी हो और... तुम मेरी ज़िन्दगी हमेशा रहोगी ।

रवि आनंद

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