Thursday, 22 November 2018

यादों का सूटकेस | इनबॉक्स यादें | लघुकथा

तुम गए मगर
गए नहीं ठीक से ......

तुमनें यादों का , प्यार का , जज़्बात का , दुलार का ना जाने कितनी स्मृतियों को  मेरे मन के सूटकेस में बंद कर के चले गए।

कमाल हैं ना ! तुम्हें तो ठीक से जाना भी नहीं आता है कितनी Care less हो यार तुम, ऐसे कौन जाता है ?

अब मैं क्या तुम्हारी यादों से भरे सूटकेस में जो यादों के जो नोट हैं उसे खुल्ले करवाऊं क्या ? बताओ ना तुम , बताओ है क्या कोई जबाब तुम्हारे पास ?

जाती तो ठीक से जाती ना ...

ये तो वो यादों के नोट हैं जिसके खुल्ले कभी भी खत्म नहीं होगें, कभी भी नहीं ।

रवि आनंद

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