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Friday, 24 August 2018

इंसान यूँ कैसे बदलता है ?

यक़ीनन यकीन नहीं होता है
 इंसान यूँ कैसे बदलता है

चंद लम्हें में , और कुछ करवट में चांद सूरज हो जाता है
शहर में धूप और इंसान रुखसत हो जाता है

भरोसा अल्फ़ाज़ सा लगता है बस
किसी पे यक़ीन होता नहीं होता अब

मौसम मिसाल के काबिल था इस मामले में
इंसान ने इसे भी पीछे छोड़ दिया अब

रवि आनंद

पहले सिद्ध करो बे !

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