टिप टिप बरसा पानी पर लेख लिखने का मन कर रहा है पर थोड़ा डर भी लग रहा है कि कोई महिला विरोधी ना घोषित कर दें। अभी फेमिनिस्म अपने शबाब पर है , दीपिका पादुकोण जैसी विश्वविख्यात अभिनेत्री वीडियो संदेश जारी कर के महिलाओं के बीच में जागरूकता फैला रही हैं और बता रही हैं "my body my choice" अर्थात मेरा शरीर मेरी पसंद । ये इक्कीसवीं सदी की नारी सशक्तिकरण है जिसमे यदी आप महिला हैं तो आपको क्या पहनना है इसपे आपको सबसे पहले आवाज उठानी पड़ेगी तब जा कर आपका फेमिनिस्ट की विचारधारा सिद्ध होगी । "वस्त्र का आधार" फेमिनिस्म की मुख्यधारा में आती है और ये महिलाओं की समकालीन होने को दर्शाती है।
चलये अब टिप टिप वर्षा पानी के पृष्टभूमि की व्याख्या करते हैं। तब अक्षय कुमार इतने देश भक्त नहीँ हुआ करते थे और रवीना टंडन भी उतनी फेमिनिस्ट नहीँ थी , क्योंकि उस वक्त ट्वीटर जैसी आभासी दुनिया का उद्भव नहीं हुआ था , लोगों की अभिव्यक्ति व्यक्त करने का साधन सीमित था ।
मोहरा फ़िल्म का ये एक ऐसा गीत था जिसने 90 के दशक में लड़कों को मानो रिप्रोडक्शन का पूरा चैप्टर पढ़ा दिया हो । 500 P की quality में भी ये गीत का वीडियो 1080 P का दिखता था ,ये लोगों क़ा श्रृंगार रस के प्रती आकर्षण था या रवीना टंडन की नृत्य की प्रतीभा, ये मालूम नहीं । मुझे ऐसा लगता है इस गीत के बाद भारत में शिफॉन की साड़ीयों की विक्री में घातीय विर्द्धि हुई होगी ।
https://youtu.be/PAQYnne4Yn4
https://youtu.be/PAQYnne4Yn4
हिन्दी गीतों में कभी कभी ऐसा प्रतीत होता है जैसे स्त्रियों के शरीर को एवं स्त्रियों की सुंदरता को आलू की सब्जी की तरह उपयोग किया गया हो । सिर्फ इस गीत में ही नहीं बल्की इस जैसे हजारों गीत ऐसे होंगे जिसमे बहुत ही सांस्कृतिक तरीके से शरीर की सुंदरता का वर्णन किया गया है।
ये भीगी रात, ये भीगा बदन, ये हुस्न का आलम
ये सब अन्दाज़ मिल कर, दो जहां को लूट जायेंगे ....
ये कितना सभ्य और सांस्कृतिक साउंड कर रहा है।
ये सब अन्दाज़ मिल कर, दो जहां को लूट जायेंगे ....
ये कितना सभ्य और सांस्कृतिक साउंड कर रहा है।
अल्का याग्निक की आवाज रवीना टंडन के निर्त्य पर एकदम सटीक बैठ रही थी , ऐसा प्रतीत हो रहा था गीत का हर एक लफ़्ज़ को वही गा रही हैं। उदित नारायण की आवज भी पेट्रोल नुमा बारिश की आग को और भड़काने में अक्षय कुमार को पूरा मदद कर रहा था । आनंद बक्शी ने इस गीत को लिखते समय अपना कोई कसर नहीं छोड़ा , हर एक बोल को रिप्रोडक्शन की चैप्टर में प्रजन्न क्रिया की थ्योरी की तरह पस्तुत किया । ये हे आ हा हा.. आ हा आहा.. डू डू डू डू डूबा , ऐसे बोल इस गीत के गवाह हैं। इस गीत के संगीतकार विजू शाह ने भी कोई कसर नहीं छोड़ा था , उन्होंने भी अपना पूरा सारे , गामा , सुर एवं ताल को पूरे तन मन के साथ इस गीत केलिए झोंक दिया था , जो रवीना टंडन और अक्षय कुमार के पात्र को गीत के धुन के माध्यम से पूर्ण रूप से निखार कर रख दिया था ।
इस गीत के नृत्य में रवीना टंडन और अक्षय कुमार आपस में कई बार ऐसे टकराते हैं , जैसे कि भारत और पाकिस्तान के मैच में अफरीदी और गौतम गंभीर आपस में टकराये थे। मानो अक्षय कुमार और रवीना टंडन के बीच सर्जिकल स्ट्राइक हो रहा हो ।
हम आज-कल के गीतों पर प्रतिक्रिया देने से कभी नहीं चूकते पर हमारा इतिहास यही रहा है । ऐसे गाने हर दिन बन रहे हैं । परन्तु कभी इसका विरोध किसी महिला को भी नहीं करते देखा , बल्की हनी सिंह जैसे रैपर के गीत पर लड़कियों को थिरकते देखा है जो कि अपने रैप में लड़कियों को कमोडिटी की तरह उपयोग करते आए हैं फिर भी उनकी लाखों लड़कियां फैन हैं ... I swear choti Dress me bomb lagti menu जैसी लाइन लड़कियों को कॉम्प्लिमेंटस जैसा लगता है। परन्तु '' वस्त्र के आधर'' पर इन्हीं को कोई सुझाव मात्र दे दे तो ये फेमिनिस्म को बीच में लाने से कभी नहीं चूकती और '' my body my choice'' जैसे स्लोगन को कोट करने लगती हैं। पर जहाँ पर इनको अपना फेमिनिस्म दिखना चाहिए वहाँ पर ये एकदम खामोश सी हो जाती हैं। बेबी मारवा के मानेगी Raftaaaaar..... के रैप को कान में इयर प्लग लगा कर सुनना और इसको कॉम्प्लिमेंटस स्वरूप लेना ये कैसे फेमिनिस्म है ? कमाल है ना ? ये सिर्फ और सिर्फ इस देश में ही संभव हो सकता है।
रवि आनंद