Saturday, 16 December 2017

किताबों पर धूल जमने से कहानी बदल नहीं जाती !

आज शाम से  फ़िर यादें जवान है ,
हर गीत के अल्फ़ाज़ों में उनको ढूंढना जारी हैं ,
कलम से कागज पर हर एक शब्द में उनकी एहसास को उतारी जा रही है ,
यादों के नूर से घर में रौशनी नज़र आ रही है ,
आंखों के नोर से बारिश की खनक की आवाज सुनाई दे रही है।

रेडियो में बज रही जगजीत सिंह की ग़जल यादों को गर्म कर के दिल में आंच डाल रही है।
ऐसा लग रहा है वो मेरे लिए गा रहें है।

" कोई ये कैसे बता ये के वो तन्हा क्यों है ?
 वो जो अपना था ही और किसी का क्यों है ?
 यही दुनिया है तो फिर ऐसी ये दुनिया क्यों है ?
यही होता हैं तो आखिर यही होता क्यों है ? "

 ग़जल सिर्फ कोई गीत नहीं होती है , शायर उसे आँखो से निकले मोती की मालों की तरह गुथता है , कैफ़ी आज़मी का शब्दों ने यादों के महफ़िल में चार चाँद लगा दिए हैं।

आज बहुत सारी किताबे भी पढ़ी हर शब्द में उसे ढूंढा वो मिली भी थी , पढ़ते पढ़ते गुलज़ार साहब की वो शेर याद आ गई
" किताबों पर धूल जमने से कहानी बदल नहीं जाती "

कहनी मेरी भी वही है धूल जम गई है
स्थिर हो गई है
अधूरी है पर कहानी तो है।

रात हो गई है अब शायद
सो जाते है
उसे खव्बों में भी ढूंढना है ।

रवि आनंद

2 comments:

  1. Beautiful feelings.
    Baato baato mein Kaifi Azmi ji aur Gulzar ji ki do khubsoorat lines ke jikr bhi hue.
    Achha laga.
    Ek line Nida fazli ka judna chahunga,

    Jaisi honi chahiye thi waisi to dunia nahi,
    Par duniadaari bhi jaroori hai.
    Chalo yun hi sahi.

    ReplyDelete

पहले सिद्ध करो बे !

भारत में हम अभी ऐसे समय में जी रहे हैं जहाँ तब तक किसी भी चीज को सत्य नहीं मानी जायेगी जब तक आप उस चीज को सिद्ध ना कर दें । चाहे वो बात राष्...