Friday, 8 December 2017

कहानी हर रात की मेरे जज्बात की !

कितने दफे करवट  बदला
कितने दफे सिरहाने से फ़ोन को टटोला
कोई लाइट फ़ोन में नहीं जल रही थी
इसी समय तो उसका फ़ोन आता था
आँख बंद में भी कमबख्त दिख रही है
आँख खुले में फ़ोन की गैलरी के आइकॉन पर हाथ चला जाता है
तस्वीर कितने दफे देखु
कुछ समझ नहीं आ रहा मुझे
रोज का यही हाल हैं मेरा
कभी उठ के बैठ जाता हूँ मैसेज चेक करने की वे वजह आदत हो गई है मुझे
पुराने चैट को उँगली से ऐसे ऊपर निचे कर रहा हूँ ,
लग रहा है उसके हाथों को उँगलियों से टटोल रहा हूँ मैं मुसकुरा भी रहा हूँ अपनी तसल्ली वाली बेवकूफी पर
सब एहसास का ही तो खेल है
पर कब तक चलेगा ये उम्मीद और आशा का खेल
रोज रोज यही
ना कभी कोई मैसेज की आवाज़ आती हैं उस वक़्त
ना ही कोई फ़ोन
नेट महँगे हो गई हैं पर ना जाने कौन सा उम्मीद लिए बैठा हूँ मैं कभी फ़ोन का डाटा ऑफ नहीं करता ,
सोचता हूँ क्या पता कोई मैसेज आजाए ।
क्यों नहीं मैं पुराने चैट को डिलीट कर देता
रोज रोज उसे पढ़ना और रोना ज़िन्दगी हो गया है मेरा
क्यों कर रहा हूँ मैं ऐसा ,
किया मिलेगा मुझे ये सब कर के
कुछ समझ नहीं आ रहा सब समझ के परे है मेरे
खुद पर अब गुस्सा आता हैमुझे
मन से कहता हूँ की कुछ नहीं रखा है ये उम्मीद और इंतज़ार में
पर इसे कौन समझाए ये तो कुछ समझता ही नहीं क्या करूं मैं ? किसको बताऊँ मैं ? किसी को बता भी नहीं सकता अपनी कहाँनी
सब हँसेंगे ही ...
अच्छा छोड़ो कुछ दिन में मैं भी प्रोफेशनल हो जाऊंगा  जो चल रहा है चलने देते है।
वो किसी ने सही कहा था " routine life is very Dangerous "  मेरा भी routine हो गया है ये , कहीं Dangerous ना हो जाए मेरे लिए ।
By Ravi Anand
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