हर्फ़ को धागों में पिरोने की कोशिश की है
फिर से तुम्हें कागज़ पर उतारने की कोशिश की है
फिर से तुम्हें कागज़ पर उतारने की कोशिश की है
हर एक लिखी हर्फ़ में मैंने तुमसे कोई बात की है
उफ़्फ़ मैंने कितनी शिद्दत से तुमसे मोहब्बत की है
उफ़्फ़ मैंने कितनी शिद्दत से तुमसे मोहब्बत की है
तुम्हारे लिए हर एक लिखी हर्फ़ में मैंने इबादत की है
मोहब्बत तुमसे सीखा था मैंने उस कर्ज की अदायगी की है
मोहब्बत तुमसे सीखा था मैंने उस कर्ज की अदायगी की है
आज फिर से मैंने आँखों को नम की है
तब जा कर इस ग़ज़ल को मैंने मुकम्मल की है
तब जा कर इस ग़ज़ल को मैंने मुकम्मल की है
रवि आनंद
संशोधित करने केलिए प्रशांत झा का आभार