Tuesday, 9 April 2019

एक मुद्दत हो गई..........



एक मुद्दत हो गई
वो कागज आज भी नम है
जिसपे सियाही ने गम के आसूं उगले थे

एक मुद्दत हो गई
मैं फिर भी तुम्हारी राह को देखता हूँ
अब इंतज़ार भी ना करूं तेरा
मैं इतना तो बेंवफ़ा नहीं

एक मुद्दत हो गई
कितने लम्हें बीत गए
वो लम्हा कब होगा जिस लम्हें में मैं तुम्हें भूल जाऊं



एक मुद्दत हो गई
ज़िंदगी से मुलाकात नहीं हुई
ज़िंदगी में ना हो कर ज़िंदगी में यूँ दाखिला देना अच्छी बात है क्या ?

रवि आनंद

Wednesday, 3 April 2019

कितना आसान है , या कितना मुश्किल आज तक समझ नहीं आया ।

दर्द को समेटना
फ़िर कागज़ पर लिखना
नोर की सियाही बहाना
यादों को पुनः पुनर्जीवित करना
उसको शब्दों से करीब लाना
उसको महसूस करना
उसके एहसास में तृप्त हो जाना
फ़िर प्यार , मुहब्ब्त , शायरी , नज़्म , कविता का नाम दे देना
कितना आसान है , या कितना मुश्किल आज तक समझ नहीं आया ।

उससे कितना कुछ सीखा मैंने
ज़िन्दगी को जीना
ज़िन्दगी को जीते जी मर जाना
बहुत पास आना
फ़िर पास आ कर बहुत दूर हो जाना
दो बदन को एक हो कर
फिर एक - एक हो जाना
हम होना
फिर मैं हो जाना
मुहब्ब्त हासिल करने केलिए सफल होना,  सबसे ज़रूरी  होना
सब उसी से सीखा था मैंने
सब उसी से ।

मेरी बेतुकी बातों पर उसका हँसना
उसकी बेफिजूल की बातों को मेरा ध्यान से सुनना
खुले आँखों से ख़्वाब को देखना
उसकी हर एक गलती को बस एक नादानी समझना
अब उसका दूर हो जाना
किसी और का उसका हो जाना
उसके मांग पर सिंदूर लगा हुआ देखना
उसकी हाथों में मेंहदी लगा हुआ देखना
फिर दिल को बहलाने केलिए खुद से ये बोलना
कि मेरी जान तुम्हारे हाथों में जो मेहंदी लगी हुई है
इसपे रंग मेरे प्यार की चढ़ी हुई है
मेरा भी इतना बदल जाना
ना जाने ये कैसे हो गया सब कुछ
कितना आसान है , या कितना मुश्किल आज तक समझ नहीं आया ।

रवि आनंद

Monday, 11 March 2019

अपरिभाषित प्रेम | गुलज़ार

वैसे तो प्रेम को परिभाषित करना उतना ही मुश्किल है जितना पानी के वास्तविक स्वाद को किसी को बताना ।

हम अक्सर प्रेम को दो लोगों के बीच के रिश्ते का नाम दे देते हैं। इक्कसवीं सदी में प्रेम एक सांकेतिक चिन्ह सा हो गया है जो कि फेसबुक और इंस्टाग्राम के बायो और इसके स्टोरी स्टेटस तक सीमित सा हो के रह गया है। किसी को केवल स्व-शरीर पा भर लेना क्या प्रेम है ? या कोई व्यक्ति जिसने किसी से प्रेम किया हो उसको अपने पूरे ह्रदय से चाहा हो और वो उसे नहीं मिला तो क्या वो प्रेम में असफल है ? या प्रेम तब सफल है जब किसी का एहसास अपके अंतर आत्मा को छू ले । मेरे लिए प्रेम बस यही है , इसमे न जीत है न हार है , प्रेम बस एक अद्धभुत एहसास है।

1969 में एक सिनेमा आई थी खामोशी , इस गीत के बोल लिखे थे गुलज़ार साहब और संगीत दिया था हेमंत कुमार ने और आवाज़  थी लाता जी की ।

खास कर इस युग की पीढ़ी को इस गीत को ज़रूर सुनना एवं समझना चाहिए । गुलज़ार साहब ने वास्तव में मूलतः प्रेम की वास्तविक भाव को इस गीत के माध्यम से लोगों को बखूबी समझाने की कोशिश किया है । इस गीत के बोल इस प्रकार हैं ,

हम ने देखी है इन आँखों की महकती खुशबू हाथ से छूके इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो हम ने देखी है

Translation -

I have seen the odorous fragrance of those eyes
do not  stain relationship by touch of hand 
This is an experience; realization savour in with your soul
let love be love, don't give it any other name
I have seen

प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज़ नहीं एक खामोशी है सुनती है कहा करती है ना ये बुझती है ना रुकती है ना ठहरी है कहीं नूर की बूँद है सदियों से बहा करती है सिर्फ़ एहसास है ये, रूह से महसूस करो प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम ना दो हम ने देखी है ...

Love is not voice, love is not sound ,this is a silence which speaks and listens by itself 
It does not die, it does not stop, it does not stasis ,
It is a drop of ecstasy that flows for perpetuity.
This is an experience savour in your soul
let love be love, don't give it any other name
I have seen 

मुस्कराहट सी खिली रहती है आँखों में कहीं और पलकों पे उजाले से छुपे रहते हैं होंठ कुछ कहते नहीं, काँपते होंठों पे मगर कितने खामोश से अफ़साने रुके रहते हैं सिर्फ़ एहसास है ये, रूह से महसूस करो प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम ना दो हम ने देखी है ...

Somewhere in eyes it stays like a smile
stays like light on the eyelashes , Lips do not say much but on quivering lips, 
many silent stories remain pendulous ,
This is an experience savour in your soul
let love be love, don't give it any other name
I have seen .

गुलज़ार साहब के प्रेम को बड़े सौम्यता एवं सरलता के साथ कागज के पन्ने पर सजा के हम सबको समझाया है।

तो आइये इस गीत को सुनते हैं

रवि आंनद

( गीत के अनुबाद में गलती केलिए माफी , बेहतर अनुबाद केलिए सुझाब दें )

Wednesday, 16 January 2019

फिर दिल को बेबकुफ़ बनाने में क्या हर्ज है | The koshish | Ravi Anand

अधूरी सी मोहब्बत है
पूरा जज्बात है
वो दूर बहुत है मगर
फिर भी बहुत पास है

दिल तो टूटा है बेशक़
पर गम किसको है
इश्क़ का वसूल है ये
इंताजर आज भी है

दिल को तसल्ली इस बात में है
कि वो बस मेरा है
फिर दिल को बेबकुफ़ बनाने में क्या हर्ज है

अब तन्हाइयों में भी ये दिल तन्हा नहीं रहता है
शुक्रिया तेरा ,
अब ये अक्सर तुम हो जाता है अकेला नहीं रहता है

रवि आंनद

Tuesday, 8 January 2019

सर्दी है , रात है 😍

सर्दी है , रात है  ,हवा भी तेज है
तुम सिमटी होगी किसी की बाहों में ये बात कुछ अजीब है

रात के एक बज रहे हैं तुम करवट बदल रही होगी
मेरी चाँद किसी के हथेली पे सर रख के सो रही होगी

रात अपने शबाब पे है
पुराना आशिक़ तेरा जाग रहा है
तुम्हारी यादों की गर्मी से वो ठंड को मात दे रहा है

घड़ी की सुई और सांस एक साथ चल रही है
सुबह की आस लगाए ये जिंदगी यूँ ही कट रही है


रवि आंनद

Wednesday, 26 December 2018

दिसम्बर और मैं !

दिसम्बर और मैं !

साल बीतने के कगार पर है बस कुछ ही दिन शेष बचें हैं ... एक साल में 365 दिन दिसम्बर के आते ही कितने छोटे लगने लगते हैं। एक साल में क्या क्या नहीं हो जाता है और ये 365 दिन भी कम नहीं होते हैं पर बीत ही जाती है ये 365 दिन ... न जाने कैसे ।

समय का पहिया और घड़ी की सुई  कभी भी थकती नहीं है। कैलेंडर का आख़री पन्ने पर दिसम्बर लिखा देख यही सोच रहा हुं कि ये साल भी निकल गया ..साल के हर दिन कुछ ना कुछ घटित होता है और वो स्मृतियों का रूप ले लेती है और मन के किसी कोने में जा कर छुप जाती है और हमारे ज़िंदगी में वो छिपी हुई स्मृति ता उम्र हमसे लुका छुपी खेलती रहती है।


स्मृतियों का स्मरण शक्ति बहुत मजबूत होता है .. लोग इसे बहुत कम भूलते हैं।

कैलेंडर का आख़री पन्ना स्थिर हो गया है ..अब उसे कोई नहीं पलटेगा । कुछ ही दिन बचे हैं दिसम्बर में , इसके बाद फ़िर नई साल आएगी, नया कैलेंडर आएगा ।

सर्दी वयस्क होती जा रही है , और साल विदा केह रहा है। अभी दिसम्बर उम्र के उस पड़ाव में है जहाँ उसको अपनी अनुभव काम आ रही है ,कि आख़िर अंत को कैसे झेला जाए । अंत तो निश्चित है चाहे साल का हो या हमारी सांस का । एक दिन तो सबका आखरी होता है और यही स्तय है।

स्मृतियों के पन्नें में सदा केलिए मैंने इस साल को संजो के रख लिया है । साल ही तो बीत रहा है,  बस कैलेंडर बदलेगी और कैलेंडर पर लिखी अंक बदल जाएगी  ... दिन भी यही रहेगा , तारीख़ भी यही रहेगी .. बस वो पल नहीं होगें जो बीते साल बीते थे । पर वो बीते हुए पल ताउम्र केलिए याद रेह जाएंगी और कुछ साल बाद यही अतीत का नाम ले लेगी ।

दिसम्बर साल का आखिरी महीना का आखिरी सप्ताह स्तब्द्ध हो के एक आश लगाए मेरी ओर देख रहा है मानो ये केह रहा है की अगले साल सब कुछ ठीक हो जयेगा तुम चिंता मत करो ।

आशा ही तो माया है जो हमें जीने केलिए मजबूर करती है और अपने आप में वो हमें उलझा के रखती है । कल को किसने देखा हैं पर वास्तविक जीवन में हम आज और इस पल केलिए कहाँ जीते हैं। हमें तो कल की चिंता की चेतना होती है जो हमें आज में कहां जीने देती है।


ये साल ने मुझसे कुछ छीना भी जिसको मैन सिर्फ "मेरा" मान रखा था , जो कि मेरा भर्म था , वो टूट गया । पर जो मुझसे छीना उसकी आदत को सही से मुझसे छीन नहीं पाया.. आशा करता हूँ कि वो आदत जो मेरी स्वभाव में समल्लित हो चुकी है उसको जल्दी से जल्दी मुझसे छीन लें ।


जाते - जाते ये साल ने बहुत कुछ सिखाया मुझे और मैंने सिखा भी इसके लिए 2018 को धन्यवाद ।
रवि आनंद






Sunday, 9 December 2018

मुझे तुम ब्लॉक तो कर सकती हो पर डिलीट नहीं || लघुकथा || रवि आनंद

दिल के टाइमलाइन पर तुम्हारी तस्वीर ऐसे टैग हो गई है जैसे आसमा में चाँद। काश मैं तुम्हें रिमूव कर पाता ,अन-इनस्टॉल कर पाता । प्रेम के आगे विज्ञान भी अज्ञान है, नतमस्तक है।

दिल का टूटना वो अलग बात होती है ... जिसमे एक दूसरे को लोग धोका टाइप देतें हैं , दरअसल अपना केस में ये बेसिक ऑफ हर्ट ब्रेक और ब्रेकअप वाला कॉन्सेप्ट नहीं था ।
दिल तो मेरा आज भी नहीं टूटा है हां, मन जरुर टूटा है । मन और दिल का टूटने में काफी फर्क होता है । मन टूटने के केस में आप किसी से चाह कर भी घृणा नहीं कर सकते । वैसे प्रेम का कोई ब्रेकअप नहीं होता है ... ये अनन्त समय तक चलने वाली प्रकिया है । कोई आए ..जाए परन्तु वो दफ़्न हुई एहसास कभी मरती नहीं , ठीक आत्मा की तरह । कहीं दिखती नहीं , विलुप्त हो जाती है ।

तुम कहाँ हो पता नहीं मुझे , तुम्हारा पता कहाँ है कुछ भी मुझे मालूम नहीं है ... पर कभी -कभी ये जरूर लगता है कि तुम बदल गई हो , हो सकता है कि तुम्हारी कोई मजबूरी होगी , (ये मजबूरी वाला बात मैं अपनी दिल कि तसल्ली के लिए बोल रहा हूँ ) । फेसबुक पर you can't reply this conversation. Leen more. सब कुछ बयान कर रहा है , बस इतना ही तो पूछा था कि कैसे हो ? एक जबाब कि अपेछा थी बस , बाद बाक़ी तुम्हारा लाइफ तुम्हारी मर्जी । कौनसा हमारा तुम्हारा रिश्ता खून का था ... बस एक अनुबंद का था जो खत्म हो गया ।
तुम करो तुम्हरी मर्जी है ये ,  पर मैं तो तुम्हें भूलने कि चेस्टा कभी भी नहीं करूँगा ।




हां वो मेरी बातें याद हैं न तुम्हें कि ,  मुझे तुम ब्लॉक तो कर सकती हो पर डिलीट नहीं । गूगल कर लो ब्लॉक और डिलीट में क्या अंतर होता है समझ में आ जाएगी , दोनो एक दूसरे का पर्यायवाची शब्द बिल्कुल भी नही है।
रवि आनंद

पहले सिद्ध करो बे !

भारत में हम अभी ऐसे समय में जी रहे हैं जहाँ तब तक किसी भी चीज को सत्य नहीं मानी जायेगी जब तक आप उस चीज को सिद्ध ना कर दें । चाहे वो बात राष्...