एक मुद्दत हो गई
वो कागज आज भी नम है
जिसपे सियाही ने गम के आसूं उगले थे
वो कागज आज भी नम है
जिसपे सियाही ने गम के आसूं उगले थे
एक मुद्दत हो गई
मैं फिर भी तुम्हारी राह को देखता हूँ
अब इंतज़ार भी ना करूं तेरा
मैं इतना तो बेंवफ़ा नहीं
मैं फिर भी तुम्हारी राह को देखता हूँ
अब इंतज़ार भी ना करूं तेरा
मैं इतना तो बेंवफ़ा नहीं
एक मुद्दत हो गई
कितने लम्हें बीत गए
वो लम्हा कब होगा जिस लम्हें में मैं तुम्हें भूल जाऊं
कितने लम्हें बीत गए
वो लम्हा कब होगा जिस लम्हें में मैं तुम्हें भूल जाऊं
एक मुद्दत हो गई
ज़िंदगी में ना हो कर ज़िंदगी में यूँ दाखिला देना अच्छी बात है क्या ?
रवि आनंद
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