Wednesday, 30 August 2017

अब सब खैरियत है ...

तुम पूछ ही दिए हो की कैसे हो ?
तो सुनो अब सब खैरियत है

आओ पास बैठो जल्दी क्या है
अपना हाले दिल बतलाता हूँ

सुनो अब मैं गिर कर खुद सभंल जाता हूँ
ज़मीन पर हाथ रख कर खड़ा हो जाता हूँ

कोई आह तक कहने वाला नहीं है
और सिसक को समझना तो बहुत दूर की बात है

जब मुझे चोट लगती है तो मै खुद से सेहला लेता हूँ
दर्द तो कम नहीं होती पर दिल को बेहला लेता हूँ ।

रवि आनंद

Monday, 24 July 2017

ज़रूरी था !

* जो "पानी" सा ज़रूरी था
जिन्दा रहने केलिए
वो आँखों "पानी" की वजह बन गया

* जो "हवाओं" सा ज़रूरी था
सास लेने केलिए
वो "हवाओं" की तरह अपना रुख मोड़ लिया

* जो मेरा "सफ़र" था
   जो मेरा मंज़िल था
वो किसी और का "हमसफ़र" बन गया ।

रवि आनंद

Tuesday, 11 July 2017

किसान हमेशा दूसरों का पेट भरने केलिए किसानी करता है।

धान और गेहूं कि खेती चार- पाँच साल से ठप है, वैसे तो खेती ही ठप है  लेकिन धान और गेहूं को खेती में ज्यादा प्रमुखता दी जाती है। इस दोनों फसलों को उपजाने केलिए सबसे ज्यादा पानी कि जरूरतें परती है।

दमकल लगा कर खेती किसान अपने पेट भरने केलिए तो कर सकता है लेकिन दूसरे का पेट इससे नहीं भरेगा । किसान हमेशा दूसरों का पेट भरने केलिए किसानी करता है। दमकल लगा कर क्विंटल में उपजाया जा सकता है टन में नहीं ।

जिस दिन किसान सिर्फ अपने पेट भरने के बारे में सोचेगा तो क्या हाल होगा ? आप एक मिनट खर्च करके कल्पना कर सकते हैं। आप यदि इस भूल में हैं कि आपके पास पैसा हैं तो पैसे को आप चबा नहीं सकते और पर्स में डेबिट और क्रेडिट कार्ड रखने से पेट नहीं भर जाती है।

आप ज्यादा दिन बर्गर , पिजा खा कर नहीं रह सकते हैं क्योंकि ये सब तभी अच्छा लगता हैं जब पेट भरा हुआ हो । तो इस    भ्रम से बाहर आईए ।

किसान का दर्द कौन समझ सकता हैं ? ये सबसे बड़ा प्रश्न है। क्या कोई नेता किसान का दर्द समझ सकता हैं ? क्या कोई कंपनी का मालिक किसान का दर्द समझ सकता हैं ? क्या आप जो शहर के मल्टी नेशनल कंपनी में काम करते हैं सुबह घर से जाते हैं  रात को घर वापस आते हैं क्या आप किसान का दर्द समझ सकते हैं ? जी बिलकुल भी नहीं ! 

आप शहर के लोग जब किसान का दर्द नहीं समझ सकते हैं तो बाद बाकियों से क्या उम्मीद रखें । आप दफ़्तर से थके हारे घर आते हैं, आपको तो अपने बच्चों , विवि से ठीक से मिलने का मौका का नहीं मिल पाता हैं , 9 बजे दफ्तर जाते हैं और 8 बजे घर वापस आते हैं तो आप किसानों के बारे में कब सोचेंगे । 

लेकिन आप के डायनिंग टेबल का ताज पेशी जिससे बढ़ती हैं उमसे आपकी घरवाली के हाथ से ज्यादा किसी किसान कि कड़ी धूप की मेहनत होती हैं। 

लेकिन आप ये सब बात नहीं सोचते क्योंकि आपने जो बासमती चावल और अरहर कि दाल बस एक कार्ड स्वैप कर के खरीद लिया किसी मॉल में जाकर । आप केलिए सब सिंपल हैं क्योंकि आपके पास पैसा हैं। 

मुझे नेताओं से उम्मीद नहीं हैं चाहे वो किसी भी दल का नेता हो , नेताओं को राजनीति करनी हैं उनका ये प्रोफ़ेसन हैं । वो हिन्दू , मुसलिम करेंगे , दलित- दलित करेंगे और किसानों का इस्तेमाल कर के राजनीति का रोटी सकेंगे । 

किसान आत्महत्या करेगा तो उसके घर जाएंगे फोटो खिंचवाएंगे ओर फेसबुक पर पोस्ट कर देंगे । मीडिया में आ जाएंगे जो काम था उसमें वो सफल हो गये।

या कुछ नेता ट्विटर पर गप्प छोड़ते , एयरकंडीशन स्टूडियो में बैठ कर डिबेट ( कुकरा कटाउज ) करते नज़र आ जाएंगे , मीडिया और नेता दोनों का काम बन गया । मीडिया को टॉपिक और नेताओं को एक स्टेटमेंट देने का मौका ।

तो सोचिए एक बार कि , पैसा पॉकेट में होने भर से पेट नहीं भरता है उसी तरह जिस तरह समंदर के किनारे खड़ा भर होने से प्यास नहीं बुझती है।

रवि आनंद

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Wednesday, 21 June 2017

इश्क़ में कभी रिहाई नहीं मिलती ।

इश्क़ में कभी रिहाई नहीं मिलती
यादों से कभी जुदाई नहीं मिलती

गिरफ्त में दिल है आज भी उसके
जो मुझे छोड़ कर चला गया
ए खुदा तुझे जुदाई भी देनी नहीं आती

मुसलसल मुलाकात होती हैं  रोज रोज
 ऐसा क्यूँ लगता है मुझे
वो ख्वाबों में आना भी बंद नही करती

इंतिज़ार आज भी हैं कि वो लौट कर आएगी
उम्मीद के दिये कभी इश्क़ में नहीं बुझती

इश्क़ में कभी रिहाई नहीं मिलती ।

Saturday, 27 May 2017

सूखे में बारिश का !

*   तुझे पाने का इंतज़ार मेरा
     वैसा है जैसा करता है किसान 
     सूखे में बारिश का


*  बस एक उम्मीद है बेवजह
   कि मेरे बंजर ज़मी पर
   कुछ बून्द बरस जाए 
   पत्थर हो चुकी ज़िन्दगानी में
   एक बसन्त बहार आजाए


* दरारे हैं दिल कि ज़मी पर हर जगह
   उम्मीद की पलकें बिछाए रखा हूँ 
   कि कुछ बून्द बरस जाए 
   मेरे मिट्टी जैसी बदन को 
   एक सौंधी सी खुश्बू मिल जाए


* हरियाली थी कभी ज़िन्दगानी में 
  जब तेरी मोहब्बत कि बारिश हो रही थी
  पीला हो चुका हूँ मैं हर जगह धूप ही धूप है अब 
  
   बस एक उम्मीद है वेवजह
   कि मेरे बंजर ज़मी पर
   कुछ बून्द बरस जाए 
   पत्थर हो चुकी ज़िन्दगानी में
   एक बसन्त बहार आजाए


*   तुझे पाने का इंतज़ार मेरा
    वैसा है जैसा करता हैं किसान 
     सूखे में बारिश का ।



रवि आनंद

Wednesday, 24 May 2017

My two liners | Unspoken Words

1. " You are my life I can't live without you "
        He said.
     
      '' Life has no guarantee "
      She replied.

2. " Kiska phone aaya tha "
    Mom asked strictly.
  " Class mate thi mom "
Heart replied Soulmate.

3. " There was a time when
       I was wallpaper of your
       phone "
     
   " Now I'm not even in your contact list of
     Your phone "

How time flies.

4. " You have no any  how much I love you "
        He said.

" One idea can change my life "
  She replied.

5. " I love you "

   But Back space save the friendship.







    
   

Monday, 8 May 2017

एक गलती कर लिया करो | इनबॉक्स यादें | लघुकथा

तेरी डायरी के पिछले पन्ने पर मेरा नाम लिखा होगा । मेरा दिया हुआ वो गुलाब का फूल डायरी में रखे रखे सुख गए होंगे । पासपोर्ट साइज कि फ़ोटो जो तुम मांगी थी मेरा , उसको तुम बहुत मुश्किल से कहीं पे छिपाई होगी।
अंदर अंदर तुम कितनी घुटन सह रही होगी , आँख तेरा लाल लाल हो गया होगा । माँ के पूछ्ने पर , किसी के सामने आजाने पर तुम सर दर्द कर रहा है , बोल के बातों को टाल रही होगी ।  बार बार बाथरूम जा कर तुम मुँह को पोछती होगी । फेक स्माइल कर के सब नॉर्मल हैं का नाटक कर रही होगी  ।
हाँ , दवा खा लिया केह के माँ , पापा से झूठ बोल रही होगी ।

पर ये तो एक दिन कि  बात नहीं है  ना , ये तो रोज रोज की आदत जैसी होगई होंगी तुझे । कैसे कर लेती होगी यार तुम ,घंटो बक बक करते रेहना तेरा फ़ोन पे , व्हाट्स एप्प पे बातें , वीडियो कॉल्स और कल देखा तो तेरा फेसबुक भी डीएक्टिवेट था । कैसे ढाल ली अपने आप को तुम इन परिस्थतियों में , कमाल हो यार तुम तो एकदम ।

एक बात तो है , तुमसब में अपने सपनो को , अपने अरमानों को , अपने फ्यूचर को  , सब विश को तुमलोग  पता नहीं कैसे दबा लेती हो अपने भीतर । कभी बयाँ ही नहीं करती हो , और तुमलोगों इसी दबी हुई मन की बातों को कोई समझ नहीं पता है ,और तुमलोग घुटती रहती हो पूरी ज़िंदगी ।

बता दिया करो ना , जो होगा देखा जाएगा । क्यों डरती हो तुमलोग । नहीं बताओगी तो कैसे तुमहारी मन की बातों को कोई समझ पाएगा । रिस्क लेने में इतना क्यों डर लगता है , अपनी जज्बातों को तुम बताओ ना अपने घर वालों से । छोड़ो ना फालतू के लोंगो के बारे में कि वो क्या सोचेंगे । वो सोच कर के तुम्हारा क्या अच्छा कर लेंगे ।

पता है तुम समाज से डरती हो , पता है मुझे कि तुम्हें समाज की संस्कृती की चिंता हैं , कि यदि तुम अपने मन से कुछ कर ली तो समाज के लोग क्या सोचेंगे । 

पर तुम्हारा क्या मन हैं ? तुम क्या चाहती हो ?  उसका क्या होगा , जरा सोचो तो ।

एक गलती करने से यदी पूरी ज़िंदगी तुम खुश रह सकती हो तो वो गलती कर लो ना । क्या दिक्कत है। तुम किसी का बुरा तो नहीं ना कर रही हो ।

अपने बारे में भी कभी सोच लिया करो ।

काश तुम सर दर्द कर रहा है मेरा , की जगह अपनी जज्बातों को उस दिन बयाँ कर दी होती तो आज ये दिन नहीं देखने पड़ते तुम्हें।

'' जज्बातों को बयाँ करना यदी गलती हैं तो ये गलती कर लिया करो ''।

Ravi Anand

पहले सिद्ध करो बे !

भारत में हम अभी ऐसे समय में जी रहे हैं जहाँ तब तक किसी भी चीज को सत्य नहीं मानी जायेगी जब तक आप उस चीज को सिद्ध ना कर दें । चाहे वो बात राष्...