* तुझे पाने का इंतज़ार मेरा
वैसा है जैसा करता है किसान
सूखे में बारिश का
* बस एक उम्मीद है बेवजह
कि मेरे बंजर ज़मी पर
कुछ बून्द बरस जाए
पत्थर हो चुकी ज़िन्दगानी में
एक बसन्त बहार आजाए
* दरारे हैं दिल कि ज़मी पर हर जगह
उम्मीद की पलकें बिछाए रखा हूँ
कि कुछ बून्द बरस जाए
मेरे मिट्टी जैसी बदन को
एक सौंधी सी खुश्बू मिल जाए
* हरियाली थी कभी ज़िन्दगानी में
जब तेरी मोहब्बत कि बारिश हो रही थी
पीला हो चुका हूँ मैं हर जगह धूप ही धूप है अब
बस एक उम्मीद है वेवजह
कि मेरे बंजर ज़मी पर
कुछ बून्द बरस जाए
पत्थर हो चुकी ज़िन्दगानी में
एक बसन्त बहार आजाए
* तुझे पाने का इंतज़ार मेरा
वैसा है जैसा करता हैं किसान
सूखे में बारिश का ।
रवि आनंद
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