जैसे इत्र के डिब्बे में इत्र खत्म हो जाने के बाद उसमें खुशबू बाकी रह जाती है
जैसे तुम मेरी बाहों में ख़ुद को महफ़ूज समझती थी
पर तुम ज़िन्दगी आज भी हो मेरी
हम मुकम्मल हैं रूह से
बदन से नहीं ।
![]() |
गाम को समर्पित ये नज़्म 💕 |
पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं कोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहीं -दुष्यंत कुमार
![]() |
गाम को समर्पित ये नज़्म 💕 |
तुम्हें उसी राह पे छोड़ दूं
तुम्हें बेइन्तहां मोहब्बत कर के फिर तुम्हारे दिल को तोड़ दूं
तुम्हें एक उम्मीद दूं , फिर मैं वो उम्मीद को तोड़ दूं
तुम्हें अपना बना लूं , फिर किसी औरों से मैं रिश्ता जोड़ लूं
तुम्हें दिल में बसा के फिर से वो दिल को मैं पत्थर बना लूं
तुम्हें मैं चाँद औऱ आफ़ताब कहूँ , फिर मैं रौशनी से किसी औऱ को भर दूं
तुम्हें मैं पानी सा ज़रूरी समझूं फिर मैं तुम्हारे आँखों में पानी की वजह बन जाऊं
अब मुझे भी बेवफ़ाई करने का मन कर रहा है
हां है ये रंजिश पर मुझे तुझसे नफ़रत करने का मन कर रहा है
मैं भी इंसान हूँ , मुझे भी इंसानियत निभाने का मन कर रहा है.....
रवि आनंद
वो लम्हा को ढूंढने मैं रोज निकलता हूँ
जिस लम्हें में तुमने वादा ता उम्र का किया था
तुमने कहा था मैंने सुना था
जुबां को खामोश कर के हमने ऐहसासों को सुना था
रूह से मुक्कमल कर के
हमने जिस्म को छोड़ा था
वो पल सालो में बदल गए
जुदा हुए ज़रूर हम लेकिन
हमदोनों ने ऐहसासों को जीवित कर गए
मेरे खून में तुम आज भी बेह रही हो
कभी आना यूँ ही
तो देखना मुझे , तुम मेरी आँखों की पुतलियों में डगमगा रही होगी .....
रवि
भारत में हम अभी ऐसे समय में जी रहे हैं जहाँ तब तक किसी भी चीज को सत्य नहीं मानी जायेगी जब तक आप उस चीज को सिद्ध ना कर दें । चाहे वो बात राष्...