Saturday, 19 May 2018

ॐ अथ श्री ब्लॉक कथा | इनबॉक्स यादें | लघुकथा

ॐ अथ श्री ब्लॉक कथा !

हम तुमको ब्लॉक कर देंगे ! ये वर्चुअल दुनिया का पिस्टल में छे गोली भर के सामने वाले को मारने से बड़ी धमकी है ।
ब्लॉक एक गेम भी है  ऐसा हम कह सकते हैं , या यूं कहें की एक परंपरा है , रिवाज है जो हर सप्ताह की मंगलवारी की वर्त  की तरह होता है , अन बन और और ब्लॉक ।


किसी को ब्लॉक करने से पहले एक थीम डायलॉग बोली जाती हैं , आज के बाद मुझे कोई मैसेज नहीं करना । bye ! कुछ
गुस्से वाली स्माइली के साथ 😀😂😳😈😠😡

औऱ बेचारे दूसरे साइड वाले लास्ट सीन चेक कर रहें हैं , बेचारे को 
प्रदर्शित चित्र ( D P ) भी नहीं दिख रहीं होती है , मैसेज तो कर रहें है पर उसमे एक ही टिक हो रहा है ,  परेशान हैं ।


व्हाट्स एप्प एक ऐसा प्लेटफ्रॉम हैं जहाँ प्रेम खामोश और लोगोँ के शब्द कम पर गए हैं । गुड मॉर्निंग G M  हो गया , ओके K हो गया , टेक केअर TC हो गया  , इत्यादी इस जैसे अनेको शब्द । स्माइली शब्द का जगह ले रहा । लोग क्या मेहसूस कर रहें हैं वो स्माइली के जरिये बयान करते हैं।

या ये कहें कि प्रेम और सम्बन्ध टाइपोग्राफिकल हो गया हैं , इक्कीसवीं सदी में इज़हारे मोहबत बहुत ही इंस्टेंट है । लास्ट सीन पर सब कुछ निभर करता हैं , लास्ट सीन सबसे खतरनाक अविष्कार हैं ये कहें तो कोई गलत नहीं होगा । झगड़ा की जड़ की शुरूवात व्हाट्स एप्प  पे यही से शुरू होता है। 

 कि तुम आए थे पर मुझे कोई मैसज नहीं किया 

सीन एक बहुत ही आशावादी शब्द हैं , यदी कोई इसे बस कर के छोड़ दे तो इंसान के आत्मसम्मान पर " सीन " ठेस पहुँचाता है।
इसलिए सीन कर के मत छोड़ये , स्माइली पास किजिए 

Thursday, 12 April 2018

जैसे मैं कोई सड़क हूँ !

और कोई काम नहीं है क्या तेरा  ?
कभी भी आजाती हो बिना बताए
पहले से तो कुछ बताया करो ना की तुम आने वाली हो पर नहीं

आज से मैं कमरे के अंदर से ताला लगा कर रखूंगा तुम आवारा हो गई हो ए " यादें " कभी भी मन हुआ तुम आजाती हो टहलने जैसे मैं कोई सड़क हूँ ।

Wednesday, 21 March 2018

रात को यादें जवान होती है | लघुकथा

रात के बारह बज रहे हैं  ,स्ट्रीट लाइट की रौशनी खिड़की से घर में झांक रही है , चाँद भी जाग रही है , तारे भी टिमटिमा रही हैं और मेरा मन भी किसी के एहसासों  को ढूंढ़ने में व्यस्त है।

सबको कुछ ना कुछ काम मिल जाता है इस दुनियां में ,काम तो काम होता है और उसे करना ही होता है, ज़िन्दगी का सत्य यही है। मैं भी जो कर रहा हूँ वो काम ही है , अनुभव ही है।

जो काम मैं कर रहा हूँ ये थोड़ा अलग है , मतलब इसमे वो हासिल होता है जिसको आप ना तो बैंक में रख सकते हैं और ना ही अपने पॉकेट के पर्स में । मैं हर रात ये काम को चैन से करता हूँ और बहुत सुकून मिलता है मुझे ।

तकिये से मुँह छुपाना , कान में ईअर फोन लगाना फ़िर कोई एक ही गीत को रिपीट मोड पर सुनना ।

 मैं रात को खास कर जगजीत सिंह जी को सुनता हूँ , जब उनकी कोई ग़ज़ल को गाते हैं तो ऐसा लगता है यादें परत दर परत खुल रही हो  ,यादों की एलबम की पेज दिमाग में अपने आप पलटने लगती है । यादें जवान होने लगती है ।

तकिये का नींद से झगड़ा हुआ सा नज़र आता है मुझे , हर रात ,क्यूंकि बेचारी पर मैं सर नहीं उसमे मैं मुँह छुपा के सोता हूँ , आँखो से बारिश भी होती हैं ये बात तो बस मेरे तकिये को पता है।

शायद अब तीन बजने वाले हैं पर नींद का कोई अता पता नहीं है
चाँद भी सूरज का इंतजार कर रही है , और मैं नींद का , और नींद में ख़्वाब का , खाव्ब में उसके दीदार का ।

रवि आनंद

Friday, 29 December 2017

मैं दिल  ,तुम गिटार आओ छेड़ दो मेरे दिल के तार ☺

मैं दिल  , तुम गिटार
आओ छेड़ दो मेरे दिल के तार

तुम गीत  , मैं अल्फ़ाज़
आओ एक मुखड़ा गा दो मेरे लिए यार

तुम गजल , मैं कागज
आओ , लिखता हूँ फिर कोई दिल की बात

तुम चाँद  ,मैं सूरज
डूब जाता हूँ फिर तेरे लिए आज
 

तुम ही किताब , तुम ही अक्षर
जुड़ जता हूँ मैं तुझमे पन्ने की तरह ए यार

रवि आनंद

Monday, 25 December 2017

दिल में कब्ज ( constipation) की तरह ना जाने कितनी बाते अटकी हुई है !

साला ये ज़िन्दगी का क्या प्लान है समझ ही नहीं आ रहा , कुछ तो सही हो जाये मेरे साथ पर नहीं । शक्ल खराब है या किस्मत या दोनो कुछ पता ही नहीं चल पा रहा । कोई भी आ कर प्रवचन दे कर चला जाता है।

दिल में कब्ज ( constipation) की तरह ना जाने कितनी बातें अटकी हुई है पर बाहर नहीं आ रही है , बहुत कुछ कहना होता है जब सुनने वाला कोई नहीं होता , ऐसा क्यों होता है पता नहीं ।

मन टूटा है या दिल कंफ्यूजन में हूँ मैं , शायद मन ही टूटा है , दिल का टूटने में दोनों तरफ से कोई गलती होती है । ऐसा कुछ था नहीं , पर साला लक ने ऐसी की तैसी मार दिया , बस हम ख़्याली पुलाव पकाते रह गये खा कोई और गया ।

रोते रोते दोनो आँखे भी मेरी बोर हो चुकी है , आँखे भी लाल  हो कर मुझे गाली देती है मानो कहती हो अबे मुझसे फ्री में कितना काम करवाता है तू ।

इतना तरक़्क़ी कर गया साइंस ,पर कुछ खास उखाड़ नहीं पाया है , अभी तक कोई ऐसा एप्प नहीं बनाया जो यादों के मेमोरी कार्ड को पूरा फॉर्मेंट कर दे । internal memory running out भी हो जाता तो कितना अच्छा था पर पता नहीं इंसान का दिमाग कितने Terabyte का होता है।

साला प्यार वो इंफेक्शन है जो केन्सर से ज्यादा खतरनाक होता है , इसकी  कोई chemotherapy नहीं होती । होती तो कितनी अच्छी होती ना , शॉक लगा , लगा कर जला देते ।

पहला चैप्टर हर सब्जेक्ट का आसान होता है ,क्योंकि उसमें कोई ऑब्जेक्ट नहीं दिखता है सबका इंट्रोडक्शन होता है , बाद में पता चलती है, फिर फटती है सबकी । प्यार में भी as it is होता है।

मतलब वही की सफ़र खूबसूरत है मंज़िल से भी ।

ये यादों का कीडे का कोई उपाय नहीं है ये दिन पर दिन इंसान को अंदर से खोखला बनाती है , दारू पी लो या चरस किसी से भी नहीं उतरेगा ।

चेहरे के तासुर से तो बस मुझे वही समझता था जिसका पता तक मुझे अब नहीं मालूम । बाद बाकी लोग मुझे पढ़ने में लगे है लेकिन समझने में कोई नहीं ।

बहुत कुछ बोलना चाहता हूँ पर जो बात मन के भीतर मौन है वो बाहर नहीं आ रही है , वैसे किसके सामने बोलू वो भी एक सवाल है ।

आशिक़ों का उम्मीद कभी खत्म नहीं होता साहेब ,
एक दिन ख्वाब में मिलूँगा उस से सब बातें करूँगा ।

रवि आनंद

Saturday, 16 December 2017

किताबों पर धूल जमने से कहानी बदल नहीं जाती !

आज शाम से  फ़िर यादें जवान है ,
हर गीत के अल्फ़ाज़ों में उनको ढूंढना जारी हैं ,
कलम से कागज पर हर एक शब्द में उनकी एहसास को उतारी जा रही है ,
यादों के नूर से घर में रौशनी नज़र आ रही है ,
आंखों के नोर से बारिश की खनक की आवाज सुनाई दे रही है।

रेडियो में बज रही जगजीत सिंह की ग़जल यादों को गर्म कर के दिल में आंच डाल रही है।
ऐसा लग रहा है वो मेरे लिए गा रहें है।

" कोई ये कैसे बता ये के वो तन्हा क्यों है ?
 वो जो अपना था ही और किसी का क्यों है ?
 यही दुनिया है तो फिर ऐसी ये दुनिया क्यों है ?
यही होता हैं तो आखिर यही होता क्यों है ? "

 ग़जल सिर्फ कोई गीत नहीं होती है , शायर उसे आँखो से निकले मोती की मालों की तरह गुथता है , कैफ़ी आज़मी का शब्दों ने यादों के महफ़िल में चार चाँद लगा दिए हैं।

आज बहुत सारी किताबे भी पढ़ी हर शब्द में उसे ढूंढा वो मिली भी थी , पढ़ते पढ़ते गुलज़ार साहब की वो शेर याद आ गई
" किताबों पर धूल जमने से कहानी बदल नहीं जाती "

कहनी मेरी भी वही है धूल जम गई है
स्थिर हो गई है
अधूरी है पर कहानी तो है।

रात हो गई है अब शायद
सो जाते है
उसे खव्बों में भी ढूंढना है ।

रवि आनंद

Friday, 8 December 2017

कहानी हर रात की मेरे जज्बात की !

कितने दफे करवट  बदला
कितने दफे सिरहाने से फ़ोन को टटोला
कोई लाइट फ़ोन में नहीं जल रही थी
इसी समय तो उसका फ़ोन आता था
आँख बंद में भी कमबख्त दिख रही है
आँख खुले में फ़ोन की गैलरी के आइकॉन पर हाथ चला जाता है
तस्वीर कितने दफे देखु
कुछ समझ नहीं आ रहा मुझे
रोज का यही हाल हैं मेरा
कभी उठ के बैठ जाता हूँ मैसेज चेक करने की वे वजह आदत हो गई है मुझे
पुराने चैट को उँगली से ऐसे ऊपर निचे कर रहा हूँ ,
लग रहा है उसके हाथों को उँगलियों से टटोल रहा हूँ मैं मुसकुरा भी रहा हूँ अपनी तसल्ली वाली बेवकूफी पर
सब एहसास का ही तो खेल है
पर कब तक चलेगा ये उम्मीद और आशा का खेल
रोज रोज यही
ना कभी कोई मैसेज की आवाज़ आती हैं उस वक़्त
ना ही कोई फ़ोन
नेट महँगे हो गई हैं पर ना जाने कौन सा उम्मीद लिए बैठा हूँ मैं कभी फ़ोन का डाटा ऑफ नहीं करता ,
सोचता हूँ क्या पता कोई मैसेज आजाए ।
क्यों नहीं मैं पुराने चैट को डिलीट कर देता
रोज रोज उसे पढ़ना और रोना ज़िन्दगी हो गया है मेरा
क्यों कर रहा हूँ मैं ऐसा ,
किया मिलेगा मुझे ये सब कर के
कुछ समझ नहीं आ रहा सब समझ के परे है मेरे
खुद पर अब गुस्सा आता हैमुझे
मन से कहता हूँ की कुछ नहीं रखा है ये उम्मीद और इंतज़ार में
पर इसे कौन समझाए ये तो कुछ समझता ही नहीं क्या करूं मैं ? किसको बताऊँ मैं ? किसी को बता भी नहीं सकता अपनी कहाँनी
सब हँसेंगे ही ...
अच्छा छोड़ो कुछ दिन में मैं भी प्रोफेशनल हो जाऊंगा  जो चल रहा है चलने देते है।
वो किसी ने सही कहा था " routine life is very Dangerous "  मेरा भी routine हो गया है ये , कहीं Dangerous ना हो जाए मेरे लिए ।
By Ravi Anand
#inboxyaaden
#Ravianand
#Story

पहले सिद्ध करो बे !

भारत में हम अभी ऐसे समय में जी रहे हैं जहाँ तब तक किसी भी चीज को सत्य नहीं मानी जायेगी जब तक आप उस चीज को सिद्ध ना कर दें । चाहे वो बात राष्...