तुम मुझमें बाकी हो ऐसे,
जैसे इत्र के डिब्बे में इत्र खत्म हो जाने के बाद उसमें खुशबू बाकी रह जाती है
जैसे इत्र के डिब्बे में इत्र खत्म हो जाने के बाद उसमें खुशबू बाकी रह जाती है
तुम चली गई पर तुम्हारी यादें एकदम महफ़ूज़ है मुझमें ऐसे
जैसे तुम मेरी बाहों में ख़ुद को महफ़ूज समझती थी
जैसे तुम मेरी बाहों में ख़ुद को महफ़ूज समझती थी
एक बात मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि जब भी मैं अपने शायरी में अल्फ़ाज़ ज़िन्दगी को लिखता हूँ उसका मतलब तुम होती हो
अब क्या करें , ज़िन्दगी में तुम तो हो नहीं
पर तुम ज़िन्दगी आज भी हो मेरी
पर तुम ज़िन्दगी आज भी हो मेरी
तुम्हारे बाद मुझे ये एहसास हो गया कि इश्क़ का होना ही इश्क़ का मुकम्मल होना होता है
तुमको मैंने इश्क करना तो सिखा ही दिया था , अब जिससे भी करना , उससे ठीक उसी तरह करना जिस तरह तुम मुझे इश्क़ किया करती थी
जाते जाते मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ ,
हम मुकम्मल हैं रूह से
बदन से नहीं ।
हम मुकम्मल हैं रूह से
बदन से नहीं ।
रवि आनंद
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गाम को समर्पित ये नज़्म 💕 |