Friday, 24 May 2019

कभी आना यूँ ही

वो लम्हा को ढूंढने मैं रोज निकलता हूँ
जिस लम्हें में तुमने वादा ता उम्र का किया था

तुमने कहा था मैंने सुना था
जुबां को खामोश कर के हमने ऐहसासों को सुना था

रूह से मुक्कमल कर के
हमने जिस्म को छोड़ा था

वो पल सालो में बदल गए
जुदा हुए ज़रूर हम लेकिन
हमदोनों ने ऐहसासों को जीवित कर गए

मेरे खून में तुम आज भी बेह रही हो
कभी आना यूँ ही

तो देखना मुझे  , तुम मेरी आँखों की पुतलियों में डगमगा रही होगी .....

रवि

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