वो लम्हा को ढूंढने मैं रोज निकलता हूँ
जिस लम्हें में तुमने वादा ता उम्र का किया था
तुमने कहा था मैंने सुना था
जुबां को खामोश कर के हमने ऐहसासों को सुना था
रूह से मुक्कमल कर के
हमने जिस्म को छोड़ा था
वो पल सालो में बदल गए
जुदा हुए ज़रूर हम लेकिन
हमदोनों ने ऐहसासों को जीवित कर गए
मेरे खून में तुम आज भी बेह रही हो
कभी आना यूँ ही
तो देखना मुझे , तुम मेरी आँखों की पुतलियों में डगमगा रही होगी .....
रवि