Wednesday, 26 December 2018

दिसम्बर और मैं !

दिसम्बर और मैं !

साल बीतने के कगार पर है बस कुछ ही दिन शेष बचें हैं ... एक साल में 365 दिन दिसम्बर के आते ही कितने छोटे लगने लगते हैं। एक साल में क्या क्या नहीं हो जाता है और ये 365 दिन भी कम नहीं होते हैं पर बीत ही जाती है ये 365 दिन ... न जाने कैसे ।

समय का पहिया और घड़ी की सुई  कभी भी थकती नहीं है। कैलेंडर का आख़री पन्ने पर दिसम्बर लिखा देख यही सोच रहा हुं कि ये साल भी निकल गया ..साल के हर दिन कुछ ना कुछ घटित होता है और वो स्मृतियों का रूप ले लेती है और मन के किसी कोने में जा कर छुप जाती है और हमारे ज़िंदगी में वो छिपी हुई स्मृति ता उम्र हमसे लुका छुपी खेलती रहती है।


स्मृतियों का स्मरण शक्ति बहुत मजबूत होता है .. लोग इसे बहुत कम भूलते हैं।

कैलेंडर का आख़री पन्ना स्थिर हो गया है ..अब उसे कोई नहीं पलटेगा । कुछ ही दिन बचे हैं दिसम्बर में , इसके बाद फ़िर नई साल आएगी, नया कैलेंडर आएगा ।

सर्दी वयस्क होती जा रही है , और साल विदा केह रहा है। अभी दिसम्बर उम्र के उस पड़ाव में है जहाँ उसको अपनी अनुभव काम आ रही है ,कि आख़िर अंत को कैसे झेला जाए । अंत तो निश्चित है चाहे साल का हो या हमारी सांस का । एक दिन तो सबका आखरी होता है और यही स्तय है।

स्मृतियों के पन्नें में सदा केलिए मैंने इस साल को संजो के रख लिया है । साल ही तो बीत रहा है,  बस कैलेंडर बदलेगी और कैलेंडर पर लिखी अंक बदल जाएगी  ... दिन भी यही रहेगा , तारीख़ भी यही रहेगी .. बस वो पल नहीं होगें जो बीते साल बीते थे । पर वो बीते हुए पल ताउम्र केलिए याद रेह जाएंगी और कुछ साल बाद यही अतीत का नाम ले लेगी ।

दिसम्बर साल का आखिरी महीना का आखिरी सप्ताह स्तब्द्ध हो के एक आश लगाए मेरी ओर देख रहा है मानो ये केह रहा है की अगले साल सब कुछ ठीक हो जयेगा तुम चिंता मत करो ।

आशा ही तो माया है जो हमें जीने केलिए मजबूर करती है और अपने आप में वो हमें उलझा के रखती है । कल को किसने देखा हैं पर वास्तविक जीवन में हम आज और इस पल केलिए कहाँ जीते हैं। हमें तो कल की चिंता की चेतना होती है जो हमें आज में कहां जीने देती है।


ये साल ने मुझसे कुछ छीना भी जिसको मैन सिर्फ "मेरा" मान रखा था , जो कि मेरा भर्म था , वो टूट गया । पर जो मुझसे छीना उसकी आदत को सही से मुझसे छीन नहीं पाया.. आशा करता हूँ कि वो आदत जो मेरी स्वभाव में समल्लित हो चुकी है उसको जल्दी से जल्दी मुझसे छीन लें ।


जाते - जाते ये साल ने बहुत कुछ सिखाया मुझे और मैंने सिखा भी इसके लिए 2018 को धन्यवाद ।
रवि आनंद






Sunday, 9 December 2018

मुझे तुम ब्लॉक तो कर सकती हो पर डिलीट नहीं || लघुकथा || रवि आनंद

दिल के टाइमलाइन पर तुम्हारी तस्वीर ऐसे टैग हो गई है जैसे आसमा में चाँद। काश मैं तुम्हें रिमूव कर पाता ,अन-इनस्टॉल कर पाता । प्रेम के आगे विज्ञान भी अज्ञान है, नतमस्तक है।

दिल का टूटना वो अलग बात होती है ... जिसमे एक दूसरे को लोग धोका टाइप देतें हैं , दरअसल अपना केस में ये बेसिक ऑफ हर्ट ब्रेक और ब्रेकअप वाला कॉन्सेप्ट नहीं था ।
दिल तो मेरा आज भी नहीं टूटा है हां, मन जरुर टूटा है । मन और दिल का टूटने में काफी फर्क होता है । मन टूटने के केस में आप किसी से चाह कर भी घृणा नहीं कर सकते । वैसे प्रेम का कोई ब्रेकअप नहीं होता है ... ये अनन्त समय तक चलने वाली प्रकिया है । कोई आए ..जाए परन्तु वो दफ़्न हुई एहसास कभी मरती नहीं , ठीक आत्मा की तरह । कहीं दिखती नहीं , विलुप्त हो जाती है ।

तुम कहाँ हो पता नहीं मुझे , तुम्हारा पता कहाँ है कुछ भी मुझे मालूम नहीं है ... पर कभी -कभी ये जरूर लगता है कि तुम बदल गई हो , हो सकता है कि तुम्हारी कोई मजबूरी होगी , (ये मजबूरी वाला बात मैं अपनी दिल कि तसल्ली के लिए बोल रहा हूँ ) । फेसबुक पर you can't reply this conversation. Leen more. सब कुछ बयान कर रहा है , बस इतना ही तो पूछा था कि कैसे हो ? एक जबाब कि अपेछा थी बस , बाद बाक़ी तुम्हारा लाइफ तुम्हारी मर्जी । कौनसा हमारा तुम्हारा रिश्ता खून का था ... बस एक अनुबंद का था जो खत्म हो गया ।
तुम करो तुम्हरी मर्जी है ये ,  पर मैं तो तुम्हें भूलने कि चेस्टा कभी भी नहीं करूँगा ।




हां वो मेरी बातें याद हैं न तुम्हें कि ,  मुझे तुम ब्लॉक तो कर सकती हो पर डिलीट नहीं । गूगल कर लो ब्लॉक और डिलीट में क्या अंतर होता है समझ में आ जाएगी , दोनो एक दूसरे का पर्यायवाची शब्द बिल्कुल भी नही है।
रवि आनंद

पहले सिद्ध करो बे !

भारत में हम अभी ऐसे समय में जी रहे हैं जहाँ तब तक किसी भी चीज को सत्य नहीं मानी जायेगी जब तक आप उस चीज को सिद्ध ना कर दें । चाहे वो बात राष्...